सोशल मीडिया हमारी नई दुनिया
सोशल मीडिया कोई सोशल नेटवर्किंग प्लॅटफॉम्स नहीं है, सोशल मीडिया अपने आप मे एक दुनिया है, एक ऐसी दुनिया जो आप की हमारी एक ऊँगली के इशारे से कुछ एक इंच की स्क्रीन पर चलती है, यह सोशल मीडिया की दुनिया कभी कभी तो लगता है की हमारी हक़ीक़ी दुनिया से बेहतर है, यहा आइडियल, मोटिवेट, और नसीहत भरी पोस्ट्स की भरमार होती है, एक से बढ़ कर एक नसीहत भरी कहानिया और मिसालें उस पर कमाल यह है की यहाँ कोई बुरा नहीं मानता बल्कि सब ही उसे लाइक करते है.
हक़ीक़ी दुनिया मे हम किसी से बोले की अपने मां बाप की सेवा करो तो वह बोलेगा जा अपनी देख पहले, यहाँ लोग तारीफों के कमैंट्स करते है, सुबह 6 बजे ख़ुद जाग कर नमाज़ पढी हो या ना पढी हो, पूजा पाठ किया हो या नहीं, लेकिन आँख खुलते ही हम आस्तिक हो जाते है, ऐसा लगता है हम दुनिया के सबसे बडे धार्मिक और अधयत्मिक इंसान है जो सुबह उठते ही पूरी दुनिया मे ज्ञान बाटने निकला है, और हम बहुत बढीया बढीया पोस्ट करने लगते है, लेकिन चाहे कुछ भी हो सोशल मीडिया की दुनिया हक़ीक़ी दुनिया से बेहतर नज़र आने लगी है, हक़ीक़ी दुनिया मे रिश्तो की कोई अहमियत नहीं है, सब एक दूसरे के गले काटने मे ज्या़िदा मसरूफ है, लेकिन सोशल मीडिया पर जी भर के, पेट भर के प्यार बरसता है.
कोई भी टेढ़े मेढे मुँह बनता फोटो डाल दो आपके फ्रेंड्स दीवाने हो जाते है, उस वक्त़ दुनिया में आप से ज्या़िदा खूबसूरत इंसान कोई नहीं होता, इतना प्यार, इतना प्यार बरसता है की आप को शायद गुमान होने लगे की आप आप ही है ना, इतनी मिठास की डाइबिटीज़ होने का डर होने लगे, लेकिन हकीकत यह है की यह सब दिखावा है, और कही न कही हम सब इससे वाक़िफ़ है, लेकिन शायद हम भी इस दिखावे के आदि हो चुके है, शायद इसी लिए हम सोशल मीडिया से बहार निकलना नहीं चाहते, दिल चाहता है की हर पल यही रहे, यहाँ वो सब तारीफ प्यार और रिश्तो की मिठास मिलती है जो हक़ीक़ी दुनिया मे नदारद है, शायद इसलिए 5-10 मिनट इस दुनिया मे ना आओ तो बेचेनी होने लगती है,
लेकिन गुंडा गर्दी ने अपने पैर यहाँ भी पसार दिए है, गुंडों और घटिया इंसानो का एक टोला इस दुनिया मे भी बहुत एक्टिव रहता है, खास कर राजनितिक पार्टियों और अपने काले दिल को खादी मे ढकने वालो के पालतू, पूरे मन के साथ अपना काम करते है, उस गुंडागर्दी को एक इंग्लिश का सलीकेदार नाम दे दिया है, ट्रोलिंग, हम इसके भी आदि हो चुके है, वैसे एक बात है, किसी घटिया चीज़ को कोई अंग्रेजी नाम दे दो तो वो इतनी बुरी नहीं लगती, और हमें उसका आदि होने मे उसे सहज लेने मे ज़्यादा दिक्कत भी नहीं आती.
एक बेवक़ूफ़ी है, इस सोशल मीडिया की दुनिया मे हम सब दिल लगा कर करते है, बिना समझे, बिना सच जाने, जो बात हम तक आती है उसे आगे खिसका देते है, पता नहीं हम अपनी बेवकूफी का सबूत देते है या शायद वजह यही है की इस सोशल मीडिया की दुनिया मे हम दूसरों पर ज़रूरत से ज्याि़दा भरोसा करते है, हमें लगता है वह तो सच का फरिश्ता है, झूट बोल ही नहीं सकता, तो हम बिना सच जाने, बिना समझे, पोस्ट आगे खिसका देते है, हक़ीक़ी दुनिया मे कोई किसी पर इतना भरोसा करता है? लोग का सोचना गलत है की तीसरा विश्व युद्ध परमाणु हथियारों का होगा, नहीं भाई वह सोशल मीडिया पर लडा़ जायेगा, गालिया दे दे कर, ट्रोल कर के, अपशब्दों के परमाणु बाम गिराए जायेगें, जो लोग भाग जायेगें सोशल मीडिया बंद कर देगें वो हारे हुए मान लिए जायेगें.
तक़रीबन ज़्यादातर लोग सोशल मीडिया पर अपने चेहरे पर मास्क लगा कर आते है, जिनके घरों मे परदे का चलन नहीं है, वो भी परदे पर ज्ञान बाटते है, चाँद सिक्कों की ख़ातिर रिश्ते बिगाड़ लेने वाले लोग आपसी भाईचारा और मुहब्बत का मसीहा बन कर पोस्ट डालते है, झूट और फरेब का रिज़्क़ अपने बच्चों को खिलने वाले लोगों के सोशल मीडिया स्टेटस वफादारी और सेक्रिफाइज का ज्ञान देने वाली पोस्ट्स से भरा पड़ा है, हमने दुनिया को सुधारने का ठेका लिया हुआ है वोह भी सोशल मीडिया के ज़रिये, यहाँ हर शख़्स अपने आप मे सही और आला है, बस सामने वाला गुमराह है, सामने वाला नासमझ है जिसे समझाने की ज़रूरत है, लेकिन क्या, कभी हम आईने के सामने खडे हो कर ख़ुद से पूछते है की में केसा हूँ? मैं क्या हूँ? में खुद किस हद तक इन सभी चीज़ों को अपनी ज़िन्दगी मे उतर चूका हूँ जिसका ज्ञान में सोशल मीडिया पर बांट रहा हूँ? कही हम दिखावे की ज़िन्दगी तो नहीं जी रहे? अगर हम सब लोग इतने ही शरीफ, इतने ही सीधे, इतने ही ईमानदार है, इतने ही बड़े ज्ञानी है की दुनिया को सोशल मीडिया पर ज्ञान बाँट रहे है, इतने ही दरियादिल और अपनों से इतनी ही मुहब्बत करने वाले हैं, तो फिर हमारी हक़ीक़ी ज़िन्दगी और हमारी दुनिया इतने बुरे हालात मे कैसे है, और क्यों है?
सवाल का जवाब तलाशिये, शायद गूगल पर मिल जाए।
पढ़ने के लिए शुक्रिया
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