सियासत का बाज़ार

सियासत का बाज़ार





नफ़रतें बिकती हैं, सियासत के बाजार मे मोहब्बत के ख़रीदार नहीं हैं

चुने रहनुमा अपना, देख कर क़िरदार अब ऐसी भी आवाम नहीं है


हम सब ने मिल कर मारा है उसे जिसे जम्हूरियत कहते हैं

कोई एक शख़्स इस जुर्म का गुन्हेगार नहीं है


वो तो बेशक ख़रीदना चाहते थे, पर तुमने क्यों बेचा

तुम्हारे ईमान की फ़रोख़्त का कोई और तो ज़िम्मेदार नहीं है

नफ़रतें बिकती हैं, सियासत के बाजार मे मोहब्बत के ख़रीदार नहीं हैं 

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