वो खादिम खड़ा है मज़ार पे दरबान बन तुझे आगे धकेलने को,
तू ज़लील हुआ है वहाँ हमेशा ही, तेरी वहाँ कोई इज़्ज़त नहीं।
इस जिल्लत के बाद भी तू झुकता है क़ब्र की चौखट पर,
ये हक़ीकत है वहाँ तुझे सुनने वाला कोई मौजूद नहीं।
जहाँ रब है तेरा रूबरुः तुझसे, बस एक तरीका नमाज़ है,
तेरे सजदे और ख़ुदा के दरमियाँ कोई दरबान, कोई हाजिब नहीं।
ना फूल चाहिए उसे तुझसे, ना चादर की दरकार है,
जो दाता है बस वो देता है, उसे तुझसे कोई हाजत नहीं।
ना दरगाह पर मिलेगी तुझे, ना बाबा की दहलीज़ पर शान वो,
जो देता है तेरा परवरदिगार मर्तबा तुझे, किसी और की ताक़त नहीं।
देता है इज़्ज़त अपने बंदों को वो इस तरहाँ,
बस वही एक दर है जहाँ रोकने वाला तुझे कोई खादिम नहीं,
बस वही एक दर है जहाँ तुझे टोकने वाला कोई मुजावर नहीं
@zakiashkim By Mohammed Zaki Ansari
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