"सिवाए इब्लीस के…"


 निसार तेरी चहल-पहल पर हज़ारों ईद-ए-रबीउल अव्वल,

सिवाए इब्लीस के जहाँ में सभी तो ख़ुशियाँ मना रहे हैं।


कमज़ोर था इस्लाम इतना जो न सिखा सका तरीक़ा ख़ुशी मनाने का,

हम जुलूस की हिदायत नसरानियों से सीख कर आ रहे हैं।


और जैसे जाहिल मनाते हैं दिन कोई अपने किसी बड़े का,

वही जहालत हम ईद-मिलादुन्नबी में ला रहे हैं।


हमने भी कर ली है भीड़ इकट्ठी, हमारे हुजूम गलियों में नारे लगा रहे हैं,

अभी तो सिर्फ़ डीजे बजे हैं, कल ख़ुशी में सड़कों पर खुले नाच होंगे।

हम ख़ुशी मनाने के तरीक़े जाहिलों से सीख कर आ रहे हैं।


फ़ज्र तर्क हुई जुलूस की तैयारी में,

ज़ोहर थकान ने अदा न करने दी।

यूँ तो हज़ारों थे मुसलमान जुलूस की भीड़ में,

मोमिन को छोड़ कर सब नमाज़ से मुँह मोड़ कर जा रहे हैं।

इस तरह सिवाए इब्लीस के जहाँ में सभी तो ख़ुशियाँ मना रहे हैं।


शिरकत करे जो जुलूस में वही असली मुसलमान होते हैं,

डेक पर बजती नातों से मोहब्बत के दावे साबित होते हैं।

भीड़ में नारा "या रसूल अल्लाह" उन्होंने भी लगाया है,

जो तालीमे रसूल ﷺ को सिरे से तर्क करते आ रहे हैं।


और जेसे जाहिल मनाते हैं दिन कोई अपने किसी बड़े का 

ठीक वैसे ही हम विलादते ख़ातमुन नबीय्यीन ﷺ

मना रहे है 


तुम्हारी औरतों के पर्दे कल इन्हीं जुलूसों में चाक होंगे,

क्या औरत नहीं है उम्मती जो दूर रहे जुलूस से?

कल यह फ़तवे आम होंगे,

इसके बिगड़ते रूप को तुम अपनी आँखों से देखोगे,

दीन-ओ-इस्लाम के नाम इन्हीं जुलूसों से बदनाम होंगे।


बनेगा दाग़ कल जो इस्लाम के दामन पर,

आशिक़े रसूल कुछ ऐसे तरीक़े नबी ﷺ के नाम पर ला रहे हैं।


कहीं ऐसा तो नहीं इब्लीस मुसलमान के भेस में आ रहे हैं,

ख़ुशी मनाने के इब्लीसी तरीक़े चुपचाप सिखा रहे हैं।

और आ जाये धोखे में सीधा-सादा उम्मती इसे सुनकर,

जो यह नारे पुरज़ोर लगा रहे है

सिवाए इब्लीस के जहां मे सभी तो खुशियां मना रहे हैं


निसार तेरी चहल-पहल पर हज़ारों ईद-ए-रबीउल अव्वल,

सिवाए इब्लीस के जहाँ में सभी तो ख़ुशियाँ मना रहे हैं।

और जैसे जाहिल मनाते हैं दिन कोई अपने किसी बड़े का,

वही जहालत हम ईद-मिलादुन्नबी में ला रहे हैं।

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