दरगाह खोल लूं

 


दरगाह खोल लूं  







मंदे हैं धंधे सारे, सोच रहा हूं कोई नया काम खोल लूं
बड़ी ज़रूरत है वसीलों की ज़माने को
गर मिल जाए कोई बुजुर्ग तो एक दरगाह खोल लूं 

तबर्रुक, सिन्नी, ग़िलाफ़ फूल कई काम चल जायेगें
जितने हैं बेरोज़गार ख़ानदान मे, सब रोज़ी से लग जायेगें
टीले वाले मज़ार पर, चढा के चादर मांगी यही इक दुआ
मिल जाए जगह कुशादा आप जेसी
तो मे भी एक दरगाह खोल लूं 

मंदे हैं धंधे सारे, सोच रहा हूं कोई नया काम खोल लूं 

करामातों की सच्ची एक, क़िताब छपवा दूंगा
बच्चा देते 40 दिन मे, पर्चे बटवा दूंगा
500 वाली चादर तुमको रोज़ी भी दिलवाए गी
गर चढ़ा दो 2000 की, जन्नत भी मिल जाएगी
वक़्त हो चाहे जितना तेढा, बाबा पार लगाते बेढा
अच्छे अच्छे कुछ एसे कलीमात सोच लूं
मंदे हैं धंधे सारे, सोच रहा हूं कोई नया काम खोल लूं 

भूत प्रेत आसाब असर सब का इलाज इधर है
जिन्नातों का भी, पक्का जुगाड इधर है
पढेंगे नाते राग अलाप के, मस्त माहोल बन जायेगा
हाज़री वाले क़व्वालों का, बडा सा स्टेज लगाना इधर है
अब बडा के दाढी मे भी ख़ादिम वाला, चोला ओढ लूं
बड़ी ज़रूरत है वसीलों की ज़माने को
अब में भी एक दरगाह खोल लूं
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