माशा अल्लाह अब्दुल, माशा अल्लाह, ऐसा लग रहा है जैसे यह ताज़िया अभी खुद हुसैन की शहादत सुना देगा, कितना खुशनुमा, कितना खूबसूरत ताज़िया बनाया है तुमने, भाई वाह क्या करामात अता की है अल्लाह ने तुम्हारे हांथो को. इतना सुनते ही अब्दुल के दिल में ख़ुशी और सुकून की ऐसी लहार दौड़ी की उसकी रौनक चेहरे पर नज़र आने लगी, इतने बड़े आलिम, इतने बड़े अल्लाह वाले मौलाना सय्यद ज़ाफ़री साहिब ने अब्दुल के बनाये ताज़िये की ऐसी तारीफ की उसे यक़ीन नहीं हो रहा था, अब्दुल पिछले कई सालों से बड़े चौक का ताज़िया बना रहा है, लेकिन हर साल उसके लिए एक चेलेंज की तरह होता है, क्या शान है बड़े चौक के ताज़िये की, अगर कोई कमी रह जाये तो..... बड़े चौक का ताज़िया जिसकी करामात तो खुली क़िताब है, हज़ारो लोग फ़ैज़याब हो चुके है, कई सुनी गोद भर दी है, कितनों को अपनी रहमत से नवाज़ा है, कहाँ कहाँ से लोग इसकी ज़ियारत को नहीं आते. बड़ी शान है बड़े चौक के ताज़िये की, कभी इसे चार या पांच लोग उठा नहीं सके चाहे कितने ही ताक़तवर क्यों न हो लेकिन जैसे ही छठा हाथ लगता है ताज़िया रुई की तरह उठ जाता है, पिछले बीस दिन से अब्दुल लगा था जी तोड़ मेहनत खाना पीना सब बराबर अब उसे लगा की उसकी मेहनत का अज्र मिल गया, अब्दुल इसके लिए कोई मेहनताना तलब नहीं करता है, हुसैन का काम है बस यही सोच कर करता है. जल्दी से उसने सकीना को कॉल किया की ताज़ियेदारी होने ही वाली है वोह जल्दी आ जाये मन्नत के लिए, इंशाल्लाह इस साल हुसैन के सदके में बेटा मिल ही जायेगा, अब्दुल और सकीना के एक 12 साल की बेटी अमरीन है, अब एक बेटा भी हुसैन अता कर दे तो नस्ल का सिलसिला आगे बढ़ता रहे, सकीना अमरीन को लेकर निकल चुकी थी, तेज़ क़दमों के साथ इसलिए की उसे पता था ज़्यादा देर हुई तो हज़ारों का मजमा हो जायेगा, ज़ियारत भी ठीक से नहीं हो सकेगी, रस्ते में ही उसने दोहराया सब रख लिया है नारियल, फूल, लाल धागा और चिरागी के 501 Rs भी अलग रख दिए है, तभी उसे याद आया की तबर्रुक लेना भूल गई, जल्दी से तबर्रुक भी हलवाई की दुकान से ले लिया। हाँफते हाँफते ही पहुंची लेकिन ज़ियारत ठीक से हो गई, अभी इतने लोग नहीं थे, नारियल चढ़ा कर लाल धागा बेटे की मन्नत का बांध दिया और वादा भी किया की बेटे का नाम हुसैन ही रखेगी, अब्दुल को अभी रुकना था इसलिए दोनों माँ बेटी ज़ियारत कर के लोट चली, कितनी रौनक थी बाजार में, हर तरफ खिलोने वाले, चाट पकोड़ी, मिठाई रबड़ी के ठेले, शरबत की छबीले जगह जगह पर, बच्चो के लिए तो मुहर्रम ईद से भी बढ़ कर है भला ईद पर कौन फ्री का शरबत पिलाता है, यह तो हुसैन और हसन के सदके का तबर्रुक है, गुलाब शरबत की छबील बड़ी मशहूर है, सकीना ने कहा चल तबर्रुक ले लेते है, दोनों ने एक एक गिलास पिया लेकिन सकीना को अंदाज़ा हो गया की महगाई का असर दिख रहा है, पानी ज़्यादा है अब पहले वाली बात नहीं है, लाला जी चाट वाले को देख कर अमरीन के मुँह में पानी आ गया ज़िद करने लगी, सकीना इस शर्त पर राज़ी हुई की बस एक प्लेट ही, उसके बाद कुछ नहीं, कोई खिलौना नहीं, कोई झूला नहीं, मेले मैं घूमना नहीं, सीधे घर चलेगें, अमरीन ख़ुशी ख़ुशी राज़ी हो गई,
अब्दुल के लिए अब सख्त वक़्त था इसलिए नहीं के उसे थकान हो रही थी, लेकिन इसलिए की एक रंज कही उसके दिल में था, मुहर्रम का जलूस अपनी राह पर निकल चला था, तकलीफ होती है अब्दुल को यह देखते हुए की इतने दिन की मेहनत लगन से जिसे अपने हाथो से बनाया उसे अपने ही हाथो से पानी में ठंडा करना है, लेकिन, कर्बला और हसन हुसैन की शहादत हमें यही सबक़ तो देती है" क़ुरबानी " और "सब्र"
अब्दुल की आँख से एक आंसू टपका जब उसने ताज़िये का आखरी छोर पानी में ठंडा होते हुए देखा। भरी क़दमों से घर की तरफ लौट गया.
सकीना खाना गर्म कर के ले आई थी, अमरीन टीवी देख रही थी, टीवी पर गणेश चतुर्थी पर डॉक्यूमेंट्री आ रही थी, दिखा रहे थे कैसे गणेश जी बनाये जाते है, उन्हे विराजमान क्या जाता है कैसे लोग मन्नते मांगते है और कैसे वह दुखद पल जब उनका विसर्जन कर दिया जाता है, देखते देखते अब्दुल के चेहरे पर एक मासूम सी मुस्कान उभर आई, सकीना से मुख़ातिब हो कर बोला " यह हमारे हिन्दू भाई भी कितने भोले है, अपने ही हाथों से मूर्ति बनाते है उसी से मन्नत मांगते है और उसी को पानी में विसर्जित कर देते है," अमरीन के कानों तक यह अल्फ़ाज़ पहुंचे तो उसे शायद कुछ समझ नहीं आया, शायद कोई सवाल उसके ज़हन से टकराया हो,अब्दुल से पूछना चाहती थी लेकिन अब्दुल प्लेट लेकर किचन की तरफ चला गया तो अमरीन अपने आप से बुदबुदाने लगी
पिछले कई दिनों से अब्बू यही तो कर रहे है, अपने हाथ से ताज़िया बनाया, अम्मा ने नारियल चढ़ा कर उससे मेरे लिए भाई की मन्नत मांगी, हम सब से तबर्रुक भी खाया, और अब्बू उसे पानी में ठंडा कर आये, अगर यह गलत है तो वह सही कैसे था, और वह सब सही था तो यह सब ग़लत कैसे है?
कोई नहीं जनता अमरीन को उसके इस सवाल का कोई जवाब मिलेगा भी या नहीं, लेकिन यह सवाल इस बात की अलामत है की तोहिद ने उसके दिल और ज़हन पर दस्तक दे दी है.
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